शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

पारिवारिक मिलन

जब से हम सभी भाई  अलग-अलग शहरों में रहकर नौकरी करने लगे हैं तब से ऐसे मौके हमारी जिंदगी में कम ही आते हैं जब हम सभी भाई-बहिन एक साथ हों. इनमें ऐसे मौके तो और भी कम होते हैं जब हम सबके परिवार भी एक साथ हों. ऐसा केवल किसी पारिवारिक समारोह में या बड़े त्यौहार के अवसर पर ही हो पाता है. ऐसा ही एक दुर्लभ क्षण इस दीपावली पर आने वाला है जब हम सबके सभी बच्चे भी साथ-साथ होंगे. इस बार दीपांक और आँचल (चिंका) पुणे से,  साहिल (सनी) बंगलोर से और रचित (मनु) दिल्ली से आ रहे हैं. हम लखनऊ से जा रहे हैं. बाकी आगरा में ही हैं. ऐसा ही एक दुर्लभ से भी दुर्लभ अवसर जनवरी 2012 में डा. शिल्पी की शादी के समय आने वाला है.
जब हमारे बच्चे दो-चार घंटों के लिए साथ होते हैं तो मिलकर बहुत खेलते हैं और मस्ती करते हैं. उनको साथ-साथ खेलते देखकर दिल को बहुत ठंडक पहुंचती है. जब कुछ घंटे साथ रहने के बाद वे अलग होते हैं तो बहुत रोते हैं. यह देखकर हमारी छाती फट जाती है. पापी पेट की खातिर हमें दूर-दूर रहना पड़ता है. वरना कौन अपने जन्म स्थान को छोड़ना चाहता है? 
पारिवारिक व्यवस्था का  महत्त्व ऐसे ही अवसरों पर पता चलता है. पारिवारिक व्यवस्था हमारी संस्कृति की एक महान देन है. अन्य संस्कृतियों में जहाँ इसका बहुत छोटा रूप देखने को मिलता है, वहीँ भारत में इसके उदाहरण आम हैं. इस पारिवारिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देने के प्रयास भी किये गए हैं, परन्तु अभी तक इसका अस्तित्व विद्यमान है और जब तक भारतीय संस्कृति है तब तक बना रहेगा, भले ही आर्थिक कारणों से यह व्यवस्था धूमिल पड़ गयी हो. 



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