रविवार, 29 जनवरी 2012

पारिवारिक मिलन संपन्न

विगत २७ जनवरी को हमारी भतीजी डा. शिल्पी का शुभ विवाह बरेली के डा. अनूप के साथ संपन्न हुआ. जैसा की मैंने पहले लिखा था यह एक ऐसा दुर्लभ से भी दुर्लभ अवसर था जब हमारा सम्पूर्ण परिवार एक साथ आया था. तीन दिनों तक सबने खूब मस्ती की. लेडिज संगीत में सब घंटों तक नाचते रहे. विवाह भी सकुशल हो गया. 
लेकिन अफ़सोस कि विवाह के अगले ही दिन सब फिर अलग अलग हो गए. शिल्पी तो बरेली में रह ही गयी, एक घंटे बाद ही साहिल बंगलौर तथा मनु दिल्ली की ओर निकल गए. शाम को आँचल भी पुणे चली गयी. अगले दिन दीपांक भी चंडीगढ़ चला गया और हमारे साथ मोना लखनऊ आ गयी. श्वेता आगरा में और चारू-विवेक फरह में रह गए. सारे भाई बहन फिर दूर-दूर हो गए, केवल मोबाइल के माध्यम से संपर्क में रहने के लिए. यह वर्तमान वातावरण का प्रभाव है कि बेटियां विवाह करके दूर चली जाती हैं और बेटे पढ़ने या नौकरी के लिए दूर हो जाते हैं. रह जाते हैं अकेले माँ-बाप, केवल टेलीफोन के माध्यम से बात करने के लिए. 
अगला पारिवारिक मिलन कब होगा, ईश्वर ही जानता है. शायद शीघ्र ही चारू का विवाह होगा. 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

मकर संक्रांति : अन्धकार से प्रकाश की ओर

वैदिक ऋषियों की प्रार्थना है- "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात  मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर  ले चलो. मकर संक्रांति का पावन पर्व हमें इसी का स्मरण कराता है. हमारे प्यारे देश का नाम भा-रत है, अर्थात जो प्रकाश की साधना में लगा हुआ है. हमारा सम्पूर्ण प्राचीन साहित्य अन्धकार में प्रकाश की खोज को समर्पित है.
मकर संक्रांति के दिन से सूर्य भगवान दक्षिणायन पथ को छोड़कर उत्तरायण के पथ पर चलना प्रारंभ करते हैं. इससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं. दूसरे शब्दों में, प्रकाश बढ़ने लगता है और अँधेरा कम होने लगता है.

मौसम की दृष्टि से मकर संक्रांति के बाद शीत का प्रकोप कम हो जाता है तथा बसंत ऋतु की आहट आने लगती है. मकर संक्रांति के पर्व पर हम कुछ नया और अच्छा करने का संकल्प लें तो इस पर्व की सार्थकता होगी.