शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

महरी वंदना

हे महरी देवी नमस्कार !
तुमने घरों से नहीं किन्तु झाड़ू बर्तन से किया प्यार!
हे महरी देवी नमस्कार !!

हे देवी नित्य सवेरे ही दर्शन दे हमें उठाती हो.
दरवाजा खुलते ही मुख पर मोहक मुस्कान खिलाती हो.
जिस दिन न तुम्हारे दर्शन हों, बीबीजी को आये बुखार !
हे महरी देवी नमस्कार !!

जब तक तुम नहीं आती हो बर्तनों का ढेर चिढ़ाता है.
रसोई में पड़ा हुआ कूड़ा चूहों को भी ललचाता है.
तुम्हारे हाथों को छूते ही गायब हो कूड़े का अम्बार!
हे महरी देवी नमस्कार !!

छुट्टी का तुम नाम न लो, दिल की धड़कन बढ़ जाती है.
जुकाम तुम्हें होता है तो सबको जूड़ी चढ़ जाती है.
तुम स्वस्थ हमेशा बनी रहो, दया करे परवरदिगार!
हे महरी देवी नमस्कार !!

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