मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

भारतीय नव वर्ष की मंगलकामनायें


चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत 2070 युगाब्द 5115 भारतीय नव वर्ष का प्रथम दिन है। इस अवसर पर मैं अपने सभी ब्लागर बन्धुओं, टिप्पणी करने वालों, पाठकों और नभाटा की सम्पादकीय टीम को हार्दिक धन्यवाद के साथ भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ।

नयी नयी खुशियाँ मिलें, छाये मन में हर्ष
मंगलमय हो आपको भारतीय नव वर्ष
भारतीय नव वर्ष सफलता, सुख सम्पति दे
शुभ कर्मों में लगें निरन्तर ऐसी मति दे
करते हम ‘अंजान’ प्रार्थना जगतपिता से
आवें शुभ संवाद आपको दसों दिशा से

विजय कुमार सिंघल "अंजान"

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

पुराने मित्रों से मिलन


अपने पुराने मित्रों से बहुत दिनों बाद मिलना एक सुखद अनुभव होता है। ऐसा अनुभव मुझे कई बार हुआ है। मैं अपने कई घनिष्ठ मित्रों से 20, 22, 28 और 30 साल बाद मिला हूँ। ऐसा ही एक अवसर आगामी 9 अप्रैल को आने वाला है।

बात यह है कि मैं बैंक की सेवा में आने से पहले हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लि. (एचएएल), लखनऊ में सेवा करता था। वहाँ के मेरे अनेक सहयोगी इधर-उधर चले गये थे। अब उनमें से चार फिर एक जगह एकत्र हो रहे हैं। एक तो मैं स्वयं। दूसरे, श्री राकेश कुमार श्रीवास्तव, जो एचएएल में हमारे बॉस थे और हमसे पहले ही उसे छोड़कर पहले हिन्दुस्तान मोटर्स में फिर सिडबी (बैंक) में चले गये थे। अब वे उसी बैंक में उपमहाप्रबंधक के रूप में सेवारत हैं और हाल ही में उनका स्थानांतरण मुम्बई से लखनऊ हुआ है।

तीसरे हैं श्री विष्णु कुमार गुप्त, जो तीन माह पहले ही एचएएल से उपमहाप्रबंधक के रूप में अवकाश प्राप्त कर चुके हैं और लखनऊ में ही रह रहे हैं।

चौथे हैं श्री हरमिन्दर सिंह खेड़ा, जो मेरे एचएएल छोड़ने के कुछ समय बाद ही स्वयं भी उसे छोड़ गये थे और आजकल अमेरिका में एक प्रतिष्ठित कम्पनी में बहुत जिम्मेदारी के पद पर सेवारत हैं। वे कुछ दिनों के लिए भारत आये हैं और एक-दो दिन के लिए लखनऊ आ रहे हैं। वास्तव में हमारा मिलन उनके आगमन के उपलक्ष में ही हो रहा है। यह मिलन (गेटटुगैदर) श्री राकेश श्रीवास्तव जी के निवास स्थान पर होगा।

सोमवार, 21 जनवरी 2013

दुर्घटना और विवाह

सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पिछले सप्ताह हमने इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया। 19 जनवरी को श्रीमतीजी के एक भतीजे चि. मनीष गोयल का शुभ विवाह था, जिसमें शामिल होने हमें 17 जनवरी को आगरा जाना था। लेकिन 14 जनवरी को उनकी बड़ी बहन श्रीमती रेणु जी के साथ भयंकर दुर्घटना हो गयी, जिसके कारण हमें 15 जनवरी को ही आगरा जाना पड़ा। वे अपने इकलौते भाई श्री आलोक गोयल के साथ मोटर बाइक पर कहीं जा रही थीं कि बगल से किसी साँड़ के आने के कारण अचानक ब्रेक लगाने से और शायद साँड़ की टक्कर से दोनों गिर पड़े।
आलोक दायीं ओर गिरे। उनके दायें कंधे और पैर में मामूली चोट आयी। लेकिन रेणु दीदी बायीं ओर मुँह के बल गिरीं, जिससे उनके सिर में बहुत गहरी चोट आयी। वे उसी समय बेहोश हो गयी थीं। उनको एक परिवार की सहायता से तत्काल नर्सिंग होम ले जाया गया, जहाँ पर वे अभी भी आई.सी.यू. में जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं। वैसे वेंटीलेटर हट गया है, परन्तु अभी उनको होश नहीं आया है। आशा है शीघ्र वे खतरे से बाहर हो जायेंगी। हम तो उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए प्रभु से प्रार्थना ही कर सकते हैं। सन्तोष की बात यह रही कि श्री आलोक पूरी तरह सुरक्षित बच गये। उनके ऊपर 6 प्राणियों के परिवार का भार है।
हम चि. मनीष के विवाह में भी शामिल हुए। होना ही था, क्योंकि संसार का व्यवहार निभाना ही पड़ता है। लेकिन किसी में वह उत्साह नहीं था, जो ऐसे अवसरों पर हुआ करता है, होना चाहिए था।

रविवार, 29 जनवरी 2012

पारिवारिक मिलन संपन्न

विगत २७ जनवरी को हमारी भतीजी डा. शिल्पी का शुभ विवाह बरेली के डा. अनूप के साथ संपन्न हुआ. जैसा की मैंने पहले लिखा था यह एक ऐसा दुर्लभ से भी दुर्लभ अवसर था जब हमारा सम्पूर्ण परिवार एक साथ आया था. तीन दिनों तक सबने खूब मस्ती की. लेडिज संगीत में सब घंटों तक नाचते रहे. विवाह भी सकुशल हो गया. 
लेकिन अफ़सोस कि विवाह के अगले ही दिन सब फिर अलग अलग हो गए. शिल्पी तो बरेली में रह ही गयी, एक घंटे बाद ही साहिल बंगलौर तथा मनु दिल्ली की ओर निकल गए. शाम को आँचल भी पुणे चली गयी. अगले दिन दीपांक भी चंडीगढ़ चला गया और हमारे साथ मोना लखनऊ आ गयी. श्वेता आगरा में और चारू-विवेक फरह में रह गए. सारे भाई बहन फिर दूर-दूर हो गए, केवल मोबाइल के माध्यम से संपर्क में रहने के लिए. यह वर्तमान वातावरण का प्रभाव है कि बेटियां विवाह करके दूर चली जाती हैं और बेटे पढ़ने या नौकरी के लिए दूर हो जाते हैं. रह जाते हैं अकेले माँ-बाप, केवल टेलीफोन के माध्यम से बात करने के लिए. 
अगला पारिवारिक मिलन कब होगा, ईश्वर ही जानता है. शायद शीघ्र ही चारू का विवाह होगा. 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

मकर संक्रांति : अन्धकार से प्रकाश की ओर

वैदिक ऋषियों की प्रार्थना है- "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात  मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर  ले चलो. मकर संक्रांति का पावन पर्व हमें इसी का स्मरण कराता है. हमारे प्यारे देश का नाम भा-रत है, अर्थात जो प्रकाश की साधना में लगा हुआ है. हमारा सम्पूर्ण प्राचीन साहित्य अन्धकार में प्रकाश की खोज को समर्पित है.
मकर संक्रांति के दिन से सूर्य भगवान दक्षिणायन पथ को छोड़कर उत्तरायण के पथ पर चलना प्रारंभ करते हैं. इससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं. दूसरे शब्दों में, प्रकाश बढ़ने लगता है और अँधेरा कम होने लगता है.

मौसम की दृष्टि से मकर संक्रांति के बाद शीत का प्रकोप कम हो जाता है तथा बसंत ऋतु की आहट आने लगती है. मकर संक्रांति के पर्व पर हम कुछ नया और अच्छा करने का संकल्प लें तो इस पर्व की सार्थकता होगी.

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

अंग्रेजी नव वर्ष

हमारा नववर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आता है, लेकिन जो इस अंग्रेजी नव वर्ष को मानते हैं, उन्हें मैं नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं देता हूँ. वैसे मैं समझता हूँ कि हमें प्रत्येक दिन को आगामी एक वर्ष का पहला दिन मानना चाहिए. लेकिन तथाकथित नववर्ष के अवसर पर हुड़दंग  करना उचित नहीं है. यदि मनाना ही है तो शालीनता के साथ मनाना चाहिए. साथ में मिलकर सात्विक भोजन करें और नए वर्ष में कुछ अच्छा करने का संकल्प लें, तो इस तरह के समारोह सार्थक होंगे, वर्ना यह लकीर पीटने से अधिक कुछ नहीं है.

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

पारिवारिक मिलन

जब से हम सभी भाई  अलग-अलग शहरों में रहकर नौकरी करने लगे हैं तब से ऐसे मौके हमारी जिंदगी में कम ही आते हैं जब हम सभी भाई-बहिन एक साथ हों. इनमें ऐसे मौके तो और भी कम होते हैं जब हम सबके परिवार भी एक साथ हों. ऐसा केवल किसी पारिवारिक समारोह में या बड़े त्यौहार के अवसर पर ही हो पाता है. ऐसा ही एक दुर्लभ क्षण इस दीपावली पर आने वाला है जब हम सबके सभी बच्चे भी साथ-साथ होंगे. इस बार दीपांक और आँचल (चिंका) पुणे से,  साहिल (सनी) बंगलोर से और रचित (मनु) दिल्ली से आ रहे हैं. हम लखनऊ से जा रहे हैं. बाकी आगरा में ही हैं. ऐसा ही एक दुर्लभ से भी दुर्लभ अवसर जनवरी 2012 में डा. शिल्पी की शादी के समय आने वाला है.
जब हमारे बच्चे दो-चार घंटों के लिए साथ होते हैं तो मिलकर बहुत खेलते हैं और मस्ती करते हैं. उनको साथ-साथ खेलते देखकर दिल को बहुत ठंडक पहुंचती है. जब कुछ घंटे साथ रहने के बाद वे अलग होते हैं तो बहुत रोते हैं. यह देखकर हमारी छाती फट जाती है. पापी पेट की खातिर हमें दूर-दूर रहना पड़ता है. वरना कौन अपने जन्म स्थान को छोड़ना चाहता है? 
पारिवारिक व्यवस्था का  महत्त्व ऐसे ही अवसरों पर पता चलता है. पारिवारिक व्यवस्था हमारी संस्कृति की एक महान देन है. अन्य संस्कृतियों में जहाँ इसका बहुत छोटा रूप देखने को मिलता है, वहीँ भारत में इसके उदाहरण आम हैं. इस पारिवारिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देने के प्रयास भी किये गए हैं, परन्तु अभी तक इसका अस्तित्व विद्यमान है और जब तक भारतीय संस्कृति है तब तक बना रहेगा, भले ही आर्थिक कारणों से यह व्यवस्था धूमिल पड़ गयी हो.